success story:झुग्गी बस्ती से एक करोड़पति बनने तक की सच्ची कहानी

success story:झुग्गी बस्ती से एक करोड़पति बनने तक की सच्ची कहानी

 

भारत की एक झुग्गी बस्ती में पले -बढ़े एक नौजवान के करोड़पति बनने की एक ऐसी कहानी है जो सच्ची है और लोगों के सामने आज भी प्रत्यक्ष मौजूद है। यही कहानी आज कईयों की प्रेरणा का स्रोत बनकर लोगों के सामने खड़ी है। ये सच्ची कहानी है चेन्नई की एक झुग्गी बस्ती में पले -बढ़े सरथ बाबू की। सरथ ने झुग्गी में रहकर पढ़ाई की और आगे चलकर अपनी काबिलियत से पहले बिट्स-पिलानी और फिर आईआईएम-अहमदाबाद में दाखिला पाया और उच्च स्तरीय शिक्षा हासिल ही। लाखों की नौकरी ठुकरा कर कारोबार शुरू करने वाले सरथ ने जीवन में कई तकलीफों का सामना किया। कई चीज़ों का अभाव झेला है। लेकिन, संघर्ष जारी रखा और कामयाबी की राह में अभावों को आड़े आने नहीं दिया। सरथ की कामयाबी की कहानी से ज्यादा से ज्यादा लोगों लोगों को प्रेरणा मिले इस वजह से उन्हें कई किताबों में जगह दी गयी है। ये कहानी खूब सुनी और सुनायी जाने भी लगी। 

 सरथ बाबू का जन्म चेन्नई के मडिपक्कम इलाके की एक झुग्गी बस्ती में हुआ। परिवार दलित समुदाय से था और बहुत गरीब भी । परिवार में दो बड़ी बहनें और दो छोटे भाई थे। घर-परिवार चलाने की सारी ज़िम्मेदारी माँ पर थी। माँ दिन-रात मेहनत करती, जिसकी वजह से पाँचों बच्चों को गुज़र-बसर होता। सरथ की माँ दसवीं तक पढ़ी हुई थीं , इस वजह से उन्हें एक स्कूल में मिड डे मील योजना के तहत बच्चों का भोजन बनाने की नौकरी मिल गयी। इस नौकरी से उन्हें महीना 30 रुपये मिलते थे। लेकिन, ये तीस रुपये पांच बच्चों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए काफी नहीं थे। माँ सभी बच्चों को खूब पढ़ाना चाहती थी। उन्हें लगता था कि अगर बच्चे पढ़-लिख जाएँ तो उन्हें नौकरियां मिल जाएंगी और उन्हें तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

 माँ ने स्कूल में काम करने के अलावा सुबह में इडली बेचना भी शुरू किया। इतना ही नहीं माँ ने शाम को भारत सरकार के प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के तहत अशिक्षित लोगों को पढ़ाना भी शुरू किया। 

सरथ ने माँ को कभी निराश नहीं किया। स्कूल में हमेशा सरथ का प्रदर्शन दूसरे बच्चों से अच्छा होता। वे हमेशा क्लास में फर्स्ट आते।

पढ़ाई के साथ-साथ सरथ ने कमाई में अपनी माँ की मदद भी की। वे भी सुबह अपनी माँ के साथ इडली बेचने जाते । चूँकि झुग्गी के लोग नास्ते में इडली के लिए रुपये खर्च नहीं कर सकते थे , सरथ और उसकी माँ अमीर लोगों के मोहल्लों में जाकर इडली बेचा करते थे।

दसवीं तक सरथ ने हर परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन, दसवीं पास करने के बाद जब कालेज में दाखिले की बारी आयी तब ग्यारहवीं और बारहवीं की फीस ने सरथ को उलझन में डाल दिया। दसवीं तक उन्हें स्पेशल फीस नहीं देनी पढ़ी थी। लेकिन , अब फीस ज्यादा हो गयी थी।

फीस का भुगतान करने के लिए सरथ ने एक तरकीब ढूंढ ली। गर्मी की छुट्टियों में सरथ ने बुक-बाइंडिंग का काम करना शुरू किया। सरथ का काम इतना अच्छा था कि बहुत सारे ऑर्डर मिले। मांग के मुताबिक काम पूरा करने के लिए सरथ ने दूसरे बच्चों को अपने साथ काम पर लगा लिया।

और इसके बाद ग्यारहवीं और फिर बारहवीं की पढ़ाई हुई।

 सरथ के एक साथी ने उन्हें पिलानी के बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान यानी बिट्स,पिलानी के बारे में बताया। साथी ने ये भी कहा कि अगर सरथ को बिट्स,पिलानी में दाखिला मिल जाता है तो उन्हें बड़ी नौकरी मिलेगी, जिससे गरीबी भी हमेशा के लिए दूर हो जाएगी। सरथ के दिमाग में ये बात जमकर बैठ गयी। और उन्होंने बिट्स,पिलानी में दाखिले की परीक्षा के लिए तैयारी भी शुरू कर दी।

मेहनत और लगन का नतीजा था कि सरथ को बिट्स,पिलानी में दाखिला मिल गया।

बिट्स,पिलानी में शुरुआती दिन आसान नहीं रहे। यहाँ पढ़ने आये ज्यादातर बच्चे अमीर या फिर मध्यम वर्गीय परिवारों से थे। शायद सरथ अकेले ऐसे थे जो झुग्गी बस्ती से आये थे । दूसरे साथियों का रहन सहन काफी अलग था। उन लोगों की जीवन शैली भी अलग थी। वो लोग रुपये भी खुलकर खर्च करते थे। अंग्रेजी भी आसानी से और साफ़-साफ़ अच्छी बोलते थे।

सरथ को न अंग्रेजी ठीक से बोलना आता था और ना ही वो अपने दूसरे साथियों की तरह रुपये खर्च करने की स्थिति में थे ।

बिट्स,पिलानी से डिग्री लेने के बाद सरथ को अपने शहर चेन्नई के पोलारिस सॉफ्टवेयर लैब्स में नौकरी मिल गयी।

लेकिन, बिट्स,पिलानी में पढ़ाई के दौरान कुछ साथियों से उन्हें आईआईएम में दाखिला लेकर मैनेजमेंट की डिग्री लेने और मैनेजमेंट की कला सीखने की सलाह दी थी। कई साथी सरथ के मैनेजमेंट स्किल्स से प्रभावित थे।

नौकरी करते-करते ही सरथ ने आईआईएम में दाखिले के लिए कैट परीक्षा की तैयारी शुरू की।

दो बार फेल होने के बाद तीसरे प्रयास में सरथ ने कैट परीक्षा में दाखिले के लिए ज़रूरी रैंक हासिल कर लिया। आईआईएम वो संस्थान हैं जहाँ प्रबंधन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा दी जाती है।

सरथ को आईआईएम अहमदाबाद में दाखिल मिला ।

आईआईएम अहमदाबाद में सरथ ने प्रबंधन के गुर और बड़े-बड़े सूत्र सीखे। चूँकि सरथ को खान-पान की बिक्री का अनुभव था उन्हें मेस कमिटी यानी भोजनशाला समिति में भी जगह मिली। अपनी काबिलियत की वजह से वे समिति के सचिव भी बने।

आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ाई के दौरान ही उन्हें नौकरियों के कई प्रस्ताव मिले। तनख्वा लाखों में भी थी। लेकिन , सरथ ने नौकरी न करने का बड़ा फैसला किया।

सरथ धीरूभाई अम्बानी और नारायण मूर्ति से बहुत प्रभावित थे और जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते थे। अपनी माँ से प्रेरणा लेने वाले सरथ ने भोजन सप्लाई करने का कारोबार करने का फैसला लिया। लाखों की नौकरी छोड़कर कारोबार करने के फैसले के पीछे कई कारण और इरादे थे।

सरथ को ये भी लगता था कि अगर वो कारोबार करेंगे तो उन्हें दूसरों को नौकरियाँ देने का मौका मिलेगा। नौकरी करते हुए वे ऐसा नहीं कर सकते थे।

लाखों की नौकरी छोड़कर कारोबार करने का फैसला साहसी कदम था। कुछ जोखिम भी था। लेकिन , सरथ ने ठान ली कि वे अपने सपने और इरादे कारोबार से ही पूरे करेंगे।

सरथबाबू ने 2006 में दोस्तों के फंडिंग से फूडकिंग की स्थापना की। सबसे पहले अहमदाबाद की एक सॉफ्टवेयर कंपनी सिस्टम प्लस को इडली और फिल्टर कॉफी की आपूर्ति के साथ शुरुआत की। शुरुआत में उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि लोग एक नए प्रवेशक पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं थे। शुरुआती हार ने उन्हें नहीं रोका। धीरे-धीरे, उन्हें बिट्स, पिलानी के साथ बिट्स, गोवा के साथ अनुबंध मिला। उनकी पहली शाखा इंफो के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति द्वारा खोली गई थी

इसके बाद सरथ ने भारत में कई जगह फूड किंग केटरिंग नाम से अपने रेस्तराँ खोले। अपने इन रेस्तराओं में लज़ीज़ पकवान वाजिब कीमत पर उपलब्ध करवा कर सरथ ने खूब नाम कमाया। एक लाख रुपये से शुरू किया गया भोजन और अल्पाहार का कारोबार बढ़कर करोड़ों का हो गया।

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amit