वास्तु पुरुष को भवन का प्रमुख देवता माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु पुरुष भूमि पर अधोमुख स्थित है। अधोमुख यानी उनका मुंह जमीन की तरफ और पीठ ऊपर की ओर हैं। सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में, पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा में है। इस तरह उनकी भुजाएं पूर्व और उत्तर में हैं।
वास्तु सम्मत भवन में निवास करना मनुष्य के लिए सर्वसुख, समृद्धि, सद्बुद्धि एवं संतति प्रदायक होता है। अनेक मतों के अनुसार वास्तुशास्त्र एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें परिमित भूमि, अपरिमित शक्ति में परिवर्तित की जाती है। वह अनाम और अरूप सत्ता जो इस वास्तु मंडल में नियंत्रित की जाती है उसे वास्तु पुरुष कहते हैं। विश्वकर्मा प्रकाश में कहा है कि ब्रह्माजी ने महाभूत को वास्तु पुरुष की संज्ञा दी। भाद्रमास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि, शनिवार, कृतिका नक्षत्र, व्यतीपात योग, भद्रा के मध्य, कुलिका मुहूर्त में भगवान शंकर के पसीने की बूँद से इनकी उत्पत्ति हुई।
पुराणों के अनुसार इस महाभूत ने अपने सुप्त और विकराल शरीर से समस्त संसार को आच्छादित कर लिया। उसे देखकर इंद्र सहित समस्त देवगण एकत्र हुए और भयभीत होकर ब्रह्माजी की शरण में गए और उनसे प्रार्थना की कि-हे देव!हे भूतेश लोकपितामह!हम सभी इस विशालकाय प्राणी से भयभीत हैं और आपकी शरण में आए हैं कृपया करके हमारी मदद कीजिए,परमपिता हमारा मार्ग दर्शन कीजिए। तब ब्रह्मा जी ने कहा-हे देवगणों!भय मत करो। इस महावली को पकड़ कर भूमि पर अधोमुख गिराकर तुम सब निर्भय हो जाओगे। ब्रह्माजी के परामर्शानुसार सभी देवताओं ने उस महावली को गिराकर उस पर बैठ गए।
उस महाभूत ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की-हे प्रभो!आपने इस सम्पूर्ण जगत की रचना की है,किन्तु मेरे बिना अपराध के देवगण मुझे कष्ट देते हैं, कृपया करके मेरी मदद कीजिए। वास्तु पुरुष के वचन सुनकर ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया कि तुम भूमि पर निवास करोगे और वहाँ तुम्हारे साथ सभी 45 देवता भी निवास करेंगे। ग्राम नगर, दुर्ग, शहर, मकान, जलाशय, प्रासाद, उद्यान आदि के निर्माण आरंभ और गृहप्रवेश के समय जो तुम्हारा पूजन नहीं करेगा उसे अनेक कष्ट भोगने पड़ेंगे। उसे पग-पग पर बाधाओं का सामना करना पड़ेगा और भविष्य में तुम्हारा आहार बनेगा,ऐसा कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान हो गए। तभी से वास्तु पुरुष की पूजा की जाती है।
इस प्रकार स्थित रहते हैं भवन में
वास्तु पुरुष को भवन का प्रमुख देवता माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु पुरुष भूमि पर अधोमुख स्थित है। अधोमुख यानी उनका मुंह जमीन की तरफ और पीठ ऊपर की ओर हैं। सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में, पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा में है। इस तरह उनकी भुजाएं पूर्व और उत्तर में हैं। इनका प्रभाव सभी दिशाओं में रहता है इसलिए नींव खोदते समय, मुख्य द्वार लगाते समय व गृह प्रवेश के दौरान वास्तु पुरुष की पूजा करने का विधान बताया गया है। ऐसा करने से उस घर में रहने वाले लोगों को सुख-समृद्धि, यश प्राप्त होता है और वे हर प्रकार के कष्टों से दूर रहते हैं। इनकी पूजा के साथ भगवान शिव,श्री विष्णु, गणेशजी और ब्रह्मा जी की पूजा जरूर करनी चाहिए इससे भूमि शुद्ध हो जाती है।
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